तृतीय ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर की कथा !


   तृतीय ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर की कथा  । 


उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर ( महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग )
उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर ( महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग )

उज्जैन  मध्यप्रदेश के मालवा में शिप्रा नदी के तट पर हजारों वर्षों से बासी है,  भारत की सबसे प्राचीन सांस्कृतिक एवं धार्मिक नगरी उज्जैन  अलग-अलग सदी में अलग-अलग नामों से जानी जाती रही है ज्जैनी , अमरावती , कुशस्थली ,कनक शृंगा  और अवंतिका ,अवंतिका  नगरी भय  को दूर कर ने वाली  अकाल मृत्यु का योग  उसको दूर करने वाली ,  जितने भी भगवान विष्णु के अवतार हुए हैं कूर्म , वराह अवतार , नरसिंह अवतार हुए राम , कृष्णा सभी  किसी न किसी  समय पर अपने अवतार के समय पर अवंतिका में आए।  पुराणों में सप्त पुरी अर्थात साथ मोक्ष नगरी का उल्लेख किया गया है इसमें उज्जैन नगरी भी शामिल है उज्जैन भक्तों तथा ज्ञान के जिज्ञासाओं का नगर रहा है जिसे हम  भारत की दूसरी काशी  भी कह  सकते है , प्राचीन काल में उज्जैन में हजारों मंदिर की स्थापना की गई थी इसीलिए उज्जैन को मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है यहां महाकाल ज्योतिर्लिंग के अलावा 84 लिंगों में महादेव अलग-अलग रूपों मौजूद है उज्जैन में ही हरसिद्धि शक्तिपीठ है जो राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी है तथा कृष्ण की कुलदेवी है प्राचीन काल में विक्रमादित्य की राज्य की राजधानी भी थी यहां पर माता महाकाली हरसिद्धि के रूप में मौजूद है कथाओं के अनुसार उज्जैन में माता सती की कोहनी गिरी थी हरसिद्धि मंदिर वहीं स्थापित किया गया था।

 भगवन शिव के  देश भर में 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है इनमें से एक  ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित है  भगवान शंकर का यह शिवलिंग पूरे ब्रह्मांड में एकमात्र शिवलिंग है जो दक्षिण भीक ( दक्षिण दिशा की ओर )ज्योतिर्लिंग है , कहते है  दक्षिण दिशा काल की और  जिसने  काल  को अपने  बस में कर रखा है वह महाकाल है।  

  महाकालेश्वर का अर्थ ?

प्राचीन काल में यह मंदिर कपालियो  का बहुत बड़ा केंद्र रहा है  उज्जैन में  जितने इस समय देवता उपस्थित हैं ये सभी  कहीं ना कहीं अघोरियो  कापालियो  मतों के प्रतिपादक , काल भैरव काल भैरव का अर्थ होता है जो समय का भी भरण पोषण करने में सक्षम है .गढ़ कालिका काली मां का मंदिर है जो महाकवि कालिदास की आराध्य देवी रही है जहां से कवि कालिदास को ज्ञान प्राप्त हुआ था ,  गढ़कालिका  तथा अन्य देवताओ नामों में काल का जो वर्णन आ रहा है अर्थात समय और उस काल के ऊपर भी जो नियंत्रण करता है ,उसे महाकाल कहते है।

  महाकाल का मतलब क्या होता है ?  

काल का दो अर्थ होता है काल का अर्थ होता है समय काल  और काल का  अर्थ अंधेरा भी होता है समय यानी कि अ आप के वर्तमान अनुभव में समय का मतलब चक्र होता है 1 आड़ू  से लेकर विशाल ब्रह्मांड तक सभी चीजें चक्रों में घूमते  हैं।
     

 पौराणिक कथा:- 


  महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी हिंदी में :-

 दोस्तों आज के इस एपिसोड में हम तृतीय ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर  के की कथा बताऊंगा , इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिव पुराण के कोटी रुद्र संहिता के 16 अध्याय में सूत जी महाराज द्वारा वर्णन किया गया है दोस्तों पौराणिक कथा के अनुसार अवंती नगरी जिसे आज हम उज्जैन नगरी के नाम से भी जानते हैं वहां पर वेद नामक एक ब्राह्मण राह करते थे वे अपने घर में अग्नि की स्थापना कर प्रतिदिन अग्निहोत्र करते थे और प्रतिदिन पार्थिव लिंग का निर्माण कर शास्त्र विधि से उसकी पूजा किया  करते थे , ब्राह्मण के 4 पुत्र थे जिनके नाम इस प्रकार है देव प्रिय प्रिय मेधा , संस्कृत , सुवत्र बहुत  तेजस्वी तथा  माता पिता के आज्ञाकारी उन्हीं दिनों में रत्न माल पर्वत पर दूषण नामक एक राक्षस है अपने तपोबल से ब्रह्मा जी से अजयता का वरदान प्राप्त कर  लिया सभी को सताने के बाद अंत में उसने अवंती नगरी पर भारी सेना लेकर अवंती नगरी हमला किया अवंती नगरी के पवित्र तथा कर्तव्यनिष्ठ ब्राह्मणों की हत्या करने लगा।  


उस असुर की आज्ञा से चार भयानक दैत्य चारों दिशाओं में प्रकट हो गए उनके भयंकर उपद्रव से भी शिवजी पर अनन्य विश्वास करने वाले वे चारों ब्राह्मण बंधु भयभीत नहीं हुए उसके बाद वे चारों ब्राह्मण बंधु शिव जी का पूजन करने लगे सेना सहित राक्षस दूषण ध्यान मगन चारों बंधु के पास पहुंच गए उन चारों भाइयों को पूजा करता हुआ देख ही ललकार के बोला इन सभी की मृत्यु कर दो ब्राह्मण भाइयों ने दैत्य द्वारा की गई बातों पर ध्यान नहीं दिया भगवान शिव के ध्यान मैं लीन रहे , 

 उसने जैसे से ही  भक्तों के प्राण लेने हेतु शस्त्र  उठाया त्योंही ही उनके द्वारा पूजित पार्थिव लिंग की जगह गंभीर वालों के साथ एक गड्ढा प्रकट हो गया  तत्काल उस गड्ढे से विकट और भयंकर रूप धारी भगवान शिव प्रकट हो गए दुष्टों का विनाश करने वाले तथा सज्जन पुरुषों के कल्याण करते हुए भगवान शिव ही महाकाल के रूप में इस पृथ्वी पर विख्यात हुए उन्होंने कहा ऐसे हत्यारों के लिए ही मैं महाकाल के रुप  में प्रकट हुआ हूं इस प्रकार धमकाते हुए महाकाल भगवान शिव ने अपने हुंकार मात्र से ही उनके को भस्म कर डाला दूषण  की कुछ सेना को भी उन्होंने मार गिराया और कुछ स्वयं ही भाग  खड़ी हुई इस प्रकार परमात्मा शिव ने दूषण नामक दैत्य का वध कर दिया जिस प्रकार सूर्य के निकलते ही अंधकार छट  जाता है उसी प्रकार भगवान आशुतोष शिव को देखते ही सभी दैत्य  सैनिक पलायन कर गए देवताओं ने प्रसन्नता पूर्वक अपना शंख  बजाई और आकाश से फूलों की वर्षा की  ब्रह्मणों  को  भगवान शंकर ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा कि महाकाल महेश्वर तुम लोगों पर प्रसन्न हो तुम लोग वर मांगो महाकालेश्वर की वाणी सुनकर भक्ति भाव से पूर्ण ब्राह्मणों ने हाथ जोड़कर विनम्रता पूर्वक वर  देने वाले महाकाल शंभू आप हम सबको इस संसार सागर से मुक्त कर दे भगवान से आम जनता के कल्याण तथा उनकी रक्षा करने के लिए हमेशा के लिए आप अपने दर्शनार्थियों का उद्धार करते रहें ब्राह्मणों का सद्गति प्रदान की और अपने भक्तों की सुरक्षा के लिए स्थापित  हो गए गड्ढे के चारों ओर 3 किलोमीटर भूमि पर भगवान शिव  पृथ्वी पर महाकालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग।  

  महाकालेश्वर मंदिर परिसर :-

गर्भगृह के ऊपर शक्ति यंत्र स्थापित है ,भगवान महाकाल के बाईं तरफ भगवान श्री गणेश विराजमान दाएं ओर  त्रिशूल के पीछे कार्तिकेय और दोनों के मध्य में माता पार्वती विराजमान है।   इस ज्योतिर्लिंग की वास्तविक समय सीमा यह कब से स्थापित है हमारे ग्रंथ इस बारे में मौन है इसका अनेक धर्म ग्रंथों में उल्लेख है पुराणों में वर्णित ज्योतिर्लिंग के आधार पर हम अंदाजा लगा सकते हैं कि लगभग 5 से 7 हजार साल पुराना है वर्तमान मैं स्थिति मंदिर के निर्माण के पूर्व यह ज्योतिर्लिंग कब से  यहां पर है इसका हमारे धर्म ग्रंथों में उल्लेख नहीं है आज भी वास्तविक भूतल के नीचे महाकाल जी विराजमान होते हैं
गर्भ ग्रह के बाहर नंदी की प्रतिमा मौजूद है दर्शनार्थी यहां पर बैठकर भगवान का ध्यान करते हैं अलग-अलग प्रांत जाति समुदाय के लोग भगवान महाकालेश्वर को अपनी तरफ से प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं मंदिर में अलग-अलग समय में आरती होती है यहां पर अपनी मनोकामना को लोग नंदी के कान में कहते हैं पूजा अर्चना तथा भक्ति के गीत कई सदियों से विराजमान है महाकालेश्वर 
महाकालेश्वर मंदिर गर्भगृह के अलावा दो और महत्वपूर्ण भाग है ऊपरी तल पर मौजूद है नागचंद्रेश्वर जिनके दर्शन केवल वर्ष में एक बार नाग पंचमी के दिन ही होते हैं और उसके नीचे मंजिल के पहले तल पर ओमकारेश्वर रूप में भगवान शिव विराजमान है।  


  महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा अर्चना :-

सूर्योदय से पहले भस्म आरती से दिन की शुरुआत होती है भस्म आरती के दौरान महाकाल को पंचामृत अर्पित किए जाते हैं उसके बाद महाकाल का जलाभिषेक होता है फिर आने की विधि विधान से महाकाल का श्रृंगार किया जाता है महाकाल उज्जैन में ब्रह्म रूप में विराजमान है जोकि ब्रह्मा का रूप निराकार तथा सरकार रूप में परमपिता रहते हैं हजारों वर्षों से नियमित प्रातः काल में महाकाल की भस्म आरती होती है तब महाकाल निराकार से साकार स्वरूप धारण कर लेते हैं अर्थ अर्थ शिव से शंकर बन जाते हैं अंत में महाकाल पर भस्म आरती किया जाता है महाकालेश्वर मंदिर जब से स्थापित हुआ है तब से यहां पर भस्म से लेपन महाकाल पर किया जाता है यह प्रक्रिया प्राचीन काल से सन्यासियों का एक विशेष  समुदाय करता आ रहा है भस्म पूजा महाकाल की मुख्य पूजा मानी जाती है
भस्मा आरती का समापन प्रचंड अग्नि डमरु की तथा तेज ध्वनि एवं शंखनाद जोरदार स्वर के साथ समापन किया जाता है प्रातकाल भस्म आरती के बाद सुबह 7:00 बजे दूध देवदत्त होती है दही चावल का भोग लगाया जाता है दोपहर 10:00 बजे भोग  आरती होती है जिसमें महाकाल को भोग अर्पित किया जाता है शाम 5:00 बजे भगवान महाकाल का पूजन श्रृंगार होता है जिसमें भगवान महाकाल को भांग समर्पित की जाती है उसके बाद जल चढ़ना बंद कर दे , रोज  शाम को मंदिर के प्रांगण को दीपों से सजाया जाता है और आरती के समय मंदिर की छटा बेहद खूबसूरत एवं  निराली होती है शाम 7:00 बजे संध्या भोग आरती की जाती है संध्या काल में आरती के दौरान तेज नगाड़ा ढोल घंटियों के साथ महाकाल का वंदन किया जाता है।  
जो संध्या आरती होती है संध्या आरती को मृदंग आरती कहा जाता है , संध्या आरती का सुंदर चित्रण महाकवि कालिदास ने अपने ग्रंथ मेघदूत मैं कुछ इस प्रकार किया है  हे मेघ  जब तुम उज्जैनी जाना तो महाकाल के दर्शन अवश्य करना वहां की संध्या आरती अवश्य देखना संध्या काल में लाखों संख्या में पक्षी मंदिर के प्रांगण में लगे पेड़ों पर एकत्रित होते हैं और आरती की भव्यता पर चार चांद लगा देते हैं।  

 उज्जैन महाकुंभ धार्मिक पर्व :-

सिंहस्थ कुंभ उज्जैन का महा धार्मिक पर्व है कुंभ का शाब्दिक अर्थ कलश होता है पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुंद्र मंथन के बाद अमृत लेकर जाते समय अमृत की चार बूंद एक कलश से छल की थी और पृथ्वी पर गिर गई उसके बाद उन चारों स्थानों हरिद्वार नासिक प्रयाग और उज्जैन में कुंभ मेले की प्रथा का जन्म हुआ कुंभ के दौरान चैत्र मास की पूर्णिमा को लेकर वैशाख की पूर्णिमा तक शिप्रा नदी मैं स्नान करने को काफी महत्वपूर्ण माना गया यह 12 साल के शौर्य चक्रों का बारवा चक्र है इसे सिंहस्थ कुंभ का जाता है 
सदियों से सभी के स्वागत में हाथ जोड़े खड़ी है मंदिरों की नगरी उज्जैन और सदियों से भक्तों को अपने कृपा के आगोश में भर कर उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हुए विराजमान है कालों के काल महाकाल महाकालेश्वर . 



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